बेंगलूर व अहमदाबाद के धमाकों ने फिर सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। सरकार जहां जीत का जश्न मना रही है, वहीं इन धमाकों ने फिर जता दिया है कि आतंकी कभी भी अमन पसंद लोगों को चैन से नहीं रहने देंगे।
बेंगलूर देश की संपन्नता का प्रतीक है। ऐसे में यहां सुरक्षा तंत्र को देश की राजधानी जैसा ही सुदृढ़ किया जाना चाहिए था, लेकिन 28 दिसंबर 2005 को भारतीय विज्ञान संस्थान में आतंकी हमले से भी राज्य सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा।
मुंबई में 12 मार्च 93 को सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 250 लोगों की मौत हुई थी और 700 घायल हुए थे। तबसे हैदराबाद, मालेगांव, फैजाबाद, वाराणसी, लखनऊ, अजमेर व जयपुर में धमाके हो चुके हैं।
जब धमाके होते हैं, उस वक्त तो सरकार हरकत में आ जाती है और विपक्षी भी खूब हो हल्ला मचाते हैं।
जब तक इन आतंकियों से निपटने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई जाती, तब तक ऐसे ही धमाके होते रहेंगे। फिर भी सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगेगी और निर्दोष लोग इन आतंकियों का निशाना बनते रहेंगे। आतंकियों का जितना दुस्साहस बढ़ रहा है, सरकार उतनी ही विवश दिख रही है। सरकार को आतंकवाद से सख्ती से निपटना होगा, तभी आम जन को अमन-चैन मिल सकेगा।
2 comments:
bahut aacha hi. aage bhi likhte rahe.
बहुत-बहुत धन्यवाद
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