चार साल तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को अपने इशारों पर नचाया। अब खुद नाचने पर मजबूर हो गए वामदल।
वामदल सरकार को मुश्किल में डालने के लिए समर्थन वापसी की धमकी दे रहे थे। उनकी यह मंशा थी कि सरकार परमाणु करार पर पीछे हटे। अगर सरकार करार पर आगे बढ़ती है तो समर्थन वापस लेकर उसे मुश्किल में डाल दिया जाएगा। लेकिन उन्होंने शायद यह नहींसोचा था कि समर्थन वापस लेने के बाद उनकी हेकड़ी निकल जाएगी।
खुद को आम जनता का हितैषी बताने वाले वामदलों ने पिछले चार साल में परमाणु करार के विरोध के अलावा कोई मुद्दा नहींउठाया। क्या इस दौरान उन्हें आसमान छूती महंगाई नहीं दिखी। इस कारण देर-सबेर जब भी चुनाव होंगे तो वामदलों को उसका लाभ मिलना मुश्किल होगा। ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि पिछले चार साल में इन्होंने जनता से जुड़ा कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं उठाया है, जिसका चुनाव में इनको लाभ मिलता।
पश्चिम बंगाल में पंचायत व नगर पालिका चुनाव ने भी यह साबित कर दिया है कि अब वहां लाल रंग की चमक फीकी पड़ती जा रही है।
Sunday, July 13, 2008
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