Tuesday, July 22, 2008

'विश्वास' पर अविश्वास

विश्वास प्रस्ताव ऐसा, जिस पर किसी को विश्वास ही नहीं है। चाहे वह सत्ता पक्ष हो या फिर विपक्ष। जो विश्वास हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं विश्वास उन्हें भी नहींहै, और न ही उन्हें जो विश्वास हासिल करने की कोशिश को नाकाम करने में लगे हैं।

जो सरकार को बचाने में जुटे हैं, भले ही वह यह दावा कर रहे हों कि मंगलवार को लोकसभा में विश्वास मत प्रस्ताव पर उन्हें जीत हासिल हो जाएगी, पर उनके मन में भी संशय है। यहीं हाल विपक्ष का भी है जो सरकार गिराने में लगा है, पर इसमें उसे सफलता मिल पाएगी इसका भी कोई भरोसा नहीं है।
विश्वास मत प्रस्ताव का नतीजा चाहे सत्ता पक्ष के हक में जाए या फिर विपक्ष के, पर आम जनता व राजनीतिक दलों में विश्वास और कमजोर होना तय है।

फिर भी अब देखना यह है कि जिन अपराधी सांसदों को जेल से बाहर निकालकर लाया गया है, और जिन सांसदों को खरीद कर लाया गया है क्या वह सरकार को बचा पाएंगे? अगर सरकार बच भी जाती है तो हितैषी मनमाना ओहदा तो लेंगे ही ना। आम जनता की दुश्वारियां तो कम होंगी नहीं।

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