Saturday, July 12, 2008

प्रतिशोध की राजनीति

राजनीति में सब जायज है ! न तो कोई किसी का दोस्त है और न ही कोई किसी का दुश्मन। जो कल तक दुश्मन थे, वे आज दोस्त हो गए और जो दोस्त थे, वे दुश्मन हो गए।

कांग्रेस किस तरह से बहुमत जुटाने के लिए ओछे हथकंडे अपना रही है, यह किसी से छिपा नहीं है। जो राजनीतिक दल कल तक एक-दूसरे को जमकर कोसने से नहीं चूकते थे, आज वह एकजुट हो गए हैं। बहुमत जुटाने के लिए क्या कुछ नहीं हो रहा है। चाहे वह प्रतिशोध की राजनीति हो या फिर ब्लैकमेलिंग। विरोधियों को डराने-धमकाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआई] ने आय से अधिक संपत्ति मामले में पर्याप्त सबूत होने का दावा कर चार्जशीट भी दाखिल कर दी है। ये वहीं मायावती हैं, जो कल तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को समर्थन दे रही थीं। तब तक तो यह सरकार की काफी खास थीं, पर जब से इन्होंने संप्रग से समर्थन वापस लिया, तब से ये संप्रग की आंखों की किरकरी बन गर्ई।

समाजवादी पार्टी [सपा] का समर्थन मिलते ही सरकार ने विरोधियों [खासकर बसपा] को ठिकाने लगाने की कवायद शुरू कर दी है। क्या यहींसब होता है लोकतंत्र में। यह तो सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग हुई। जो समर्थन दे, उसके खिलाफ सीबीआई शांत हो जाए, जो न दे उसे फंसा दिया जाए।

विश्वासमत हासिल करने के लिए यह कवायद कहां तक उचित है। भले ही सरकार किसी तरह से संसद में बहुमत हासिल कर ले। पर जनता की नजर में तो सरकार पहले से ही हार चुकी है।

प्रधानमंत्री मनमोहन की परमाणु करार करने की जिद कहां तक ठीक है। प्रधानमंत्री जितना करार के लिए बेकरार हैं, काश! वह इतना महंगाई कम करने के लिए बेकरार होते तो शायद आम आदमी को कुछ राहत ही मिल जाती। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।

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