भगवान श्रीराम की महिमा को कौन नहीं जानता है। पर केंद्र सरकार बार-बार देशवासियों की आस्था पर चोट कर रही है। कहीं यह सारा खेल द्रमुक का समर्थन बरकरार रखने के लिए ही तो नहीं खेला जा रहा है। अगर ऐसा होगा भी तो कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि जब सरकार अपराधी सांसदों को जेल से बाहर निकाल सकती है, उनको खरीद सकती है तो वह कुछ भी कर सकती है।
संसद को शर्मसार कर बहुमत साबित करने के बाद केंद्र की यूपीए सरकार ने फिर भगवान श्रीराम के अस्तित्व को नकार दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सेतु समुद्रम परियोजना पर केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने यह कहकर विवाद को फिर हवा दे दी है कि रामसेतु भगवान श्रीराम ने खुद ही तोड़ दिया था।
इससे पहले भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर सुप्रीम कोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा दिए गए हलफनामे में यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया था कि भगवान श्रीराम के अस्तित्व के कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं। क्या यह हलफनामा हिंदू मानसिकता से खिलवाड़ नहीं था? जब इसका विरोध होने लगा तो केंद्र ने यह हलफनामा वापस ले लिया। अब फिर श्रीराम सेतु के अस्तित्व को यह कहकर नकारने का प्रयास किया गया कि भगवान राम ने सेतु खुद ही तोड़ दिया था। साथ ही, केंद्र सरकार वकील ने यह कहकर सभी को हैरत में डाल दिया कि सितंबर ख्007 में केंद्र द्वारा दाखिल हलफनामा बाहरी परिस्थितियों के कारण वापस लिया गया था। इस तरह केंद्र सरकार ने न केवल वापस लिए गए हफलनामे को सही ठहराया, बल्कि राम के अस्तित्व को फिर नकार दिया।
अब सवाल यह है कि महर्षि वाल्मीकि व कवि कालिदास को गलत मानकर कंब रामायण पर कैसे विश्र्वास किया जा सकता है, जो सर्वमान्य नहीं हैं। सरकार को लोगों की आस्था से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
Saturday, July 26, 2008
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