जम्मू-कश्मीर में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड विवाद को लेकर पीपुल्स ड्रेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) द्वारा गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेते ही यह आभास होने लगा था कि गुलाम नबी आजाद सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी।
विश्वासमत पर मतदान से पहले ही आजाद ने इस्तीफा इसलिए दे दिया, क्योंकि उन्हें पता था कि वह विश्वासमत नहीं हासिल कर पाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि आजाद ने इस्तीफा देने में इतनी देरी क्यों की। उन्हें पीडीपी के समर्थन वापस लेते ही इस्तीफा दे देना चाहिए था। लेकिन उन्होंने तब इस्तीफा इसलिए नहीं दिया था, क्योंकि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि वह पीडीपी को तोड़ लेंगे या फिर नेशनल कांफ्रेंस को समर्थन देने के लिए तैयार लेंगे। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए।
आजाद का अपने मंत्रियों सहित इस्तीफा दे देने से राज्य में राजनीतिक संकट और गहरा गया है। प्रदेश में ऐसा कोई दल नजर नहीं आ रहा है जो दूसरे दलों से गठजोड़ कर नई सरकार बनाने का दमखम रखता हो। ऐसे में राज्य में राष्ट्रपति शासन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अब देखना यह है कि केंद्रीय नेतृत्व किस तरह से जम्मू-कश्मीर में स्थिति को सामान्य बनाए रखने के लिए कदम उठाता है। हालांकि इसके दो ही विकल्प हैं कि या तो अगली व्यवस्था तक जम्मू-कश्मीर में आजाद को कार्यकारी मुख्यमंत्री के तौर पर बने रहने दिया जाए या फिर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए।
Tuesday, July 8, 2008
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