Tuesday, July 29, 2008

लाशों के ढेर पर राजनीति

आतंकी धमाकों ने बेंगलूर व अहमदाबाद को तो बेगुनाहों के खून से रक्तरंजित कर ही दिया है, पर देश के कई अन्य शहरों में भी ऐसे ही धमाकों की धमकी से लोग सहमे हुए हैं।

इन धमाकों का दिल दहला देने वाला मंजर किसी पत्थर दिल इंसान को भी खून के आंसू रुला देने के लिए काफी है। लेकिन सियासी दल लाशों के ढेर पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्र सरकार जहां संघीय जांच एजेंसी की हिमायत करने में जुट गई है, वहीं विपक्षी पोटा कानून की बहाली की हिमाकत कर रहा है।

कहा जा रहा है कि हादसे सांसदों की खरीद-फरोख्त के मामले को दबाने के लिए कराए गए हैं। जब सारा देश आतंकवाद सेपीडि़त लोगों के घावों पर मरहम लगा रहा है। तब क्या राजद को दिल्ली में बैठकर सांसदों की खरीद-फरोख्त के मुद्दे पर सरकार को घेरने की रणनीति बनाना उचित है।

ये ऐसा वक्त है, जब सभी सियासी दलों को मिल-बैठकर आतंकवाद की समस्या के समाधान का रास्ता खोजना चाहिए। मगर राजनेताओं को एक-दूसरे पर छींटाकशी से समय मिले तब ना।

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