Friday, July 31, 2009

कुछ तो शर्म करो?

जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पत्थर नहीं फेंका करते...मगर उन्हें कौन समझाए? क्या वह नहीं जानते कि हमाम में सभी नंगे हैं? जब खुद का दामन ही पाक-साफ न हो तो दूसरे को कैसे खराब कहा जा सकता है। क्या राजनीति अब सिर्फ बदले की भावना तक ही सीमित होकर रह गई है?

अगर ऐसा न होता तो क्या पीडीपी नेता मुजफ्फर बेग जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर सेक्स स्कैंडल में शामिल होने के आरोप लगाते। तब शायद बेग ने यह नहीं सोचा होगा कि मुझे भी ऐसे सवालों से गुजरना होगा। मगर नेशनल कांफ्रेंस ने बेग से भी सवाल किए। नेकां के नजीर अहमद गुराजी ने विधानसभा स्पीकर को ऐसे सवाल सौंपे, जिन पर स्पीकर ने बेग से जवाब मांगा। इस पर बेग खफा हो गए, और इन सवालों के पेपर ही फाड़ कर फेंक दिए।

सवाल नंबर एक
क्या यह सही है कि दिल्ली में आपके न्यू फ्रेंड्स कालोनी वाले घर में देश के जानेमाने पत्रकार की विधवा दो साल तक रही?
सवाल नंबर दो
क्या यह सही नहीं है कि आपके और उस महिला के बीच संबंधों में तब दरार आने लगी, जब आपकी नजर उसकी बेटी पर भी पड़ने लगी?
सवाल नंबर तीन
क्या यह सही है कि आप राजबाग के जंगलों के पट्टेदार की विधवा से मिलने दिल्ली में बाराखंभा रोड स्थित सूरी अपार्टमेंट जाते थे?
सवाल नंबर चार
क्या यह सही है कि जब आप वकालत करते थे तब एक पूर्व चीफ जस्टिस की बेटी आपके साथ बारामूला में दो माह रही थी?
सवाल नंबर पांच
क्या आपके दिल्ली के एक सिनेमाहल मालिक की बहन से अवैध संबंध नहीं थे? क्या आप दिल्ली में उनके दरियागंज स्थिति निवास के थर्ड फ्लोर पर उनके साथ नहीं ठहरे थे?
सवाल नंबर छह
क्या यह सही नहीं है कि आपने अपनी भतीजी को छह साल तक अपने संग रखा और उससे संबंध बनाए?

भले ही सवाल सुनने और पढ़ने वाले को शर्म आ जाए...मगर इन्हें तो आती नहीं है? अगर आती होती तो दूसरों के दामन पर क्यों कीचड़ उछालते? इस मामले में उमर ने तो तुरंत इस्तीफा दे दिया था। भले ही जांच में वे बाद में निर्दोष पाए और और उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया गया। अब बेग को भी चाहिए कि या तो वह उमर पर लगाए गए आरोप साबित करें, अन्यथा खुद भी इस्तीफा दें।

3 comments:

विवेक रस्तोगी said...

ये घटिया राजनीति और ओछी मानसिकता का एक उदाहरण मात्र है।

शरद कोकास said...

अच्छी पोस्ट है -शरद कोकास

Satish Saxena said...

उफ़ !