Thursday, July 16, 2009

ये कैसी राजनीति?



उत्तर प्रदेश की राजनीति के उच्च पदों पर आसीन दो महिला राजनेताओं के बीच छिड़ी जंग ने संसद तक को ठप कर दिया। एक की (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी) बेलगाम जबान, और दूसरी (बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख व प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती) का सत्ता का अहंकार। और मचा हुआ है बवाल। यूपी, जो कभी राजनीतिक शालीनता का पर्याय हुआ करता था, पर आज महिला राजनेताओं का यह बर्ताव देख कर स्तब्ध है।

मायावती तो मायावती हैं, लेकिन रीता बहुगुणा जोशी भी शायद अपने पिता स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा के आदर्श भूल चुकी हैं। अगर ऐसा न होता तो क्या मुरादाबाद में बलात्कार पीड़ित को प्रदेश सरकार द्वारा दिए जा रहे मुआवजे के परिपेक्ष्य में रीता यह कहती कि प्रदेश में एक नवविवाहिता का रेप हुआ तो माया सरकार ने 25 हजार रुपये मुआवजा दिया, एक अन्य युवती जिसकी बलात्कार के बाद मौत हो गई, उसे 75 हजार रुपये मुआवजा दिया गया। उन्होंने लोगों से कहा कि ऐसा मुआवजा मायावती के मुंह पर मारते हुए कहो कि हो जाए तेरा (मायावती का) बलात्कार, हम देंगे एक करोड़।

मायावती भी दूध की धुली नहीं हैं, उन्हाने भी 2007 में यूपी के एक मदरसे में दो छात्राओं से बलात्कार के मामले में तत्काल मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का नाम लेते हुए कहा था कि उनकी कोई बेटी नहीं है, लेकिन अगर उनके किसी रिश्ते की बेटी-बहू से रेप करा दिया जाए और उन्हें मुस्लिम समाज के लोग दो-दो लाख की बजाए चार-चार लाख रुपये का मुआवजा दें, तो उन्हें कैसा लगेगा। मायावती तब एक मदरसे में दो छात्राओं से बलात्कार के बाद वहां गई थीं। उन्होंने यह बयान उसी मदरसे में दिया था।

दुखद तो यह है कि इस मामले में बस महिला ही महिला है। मुख्यमंत्री महिला, पीडि़ता महिला, मृतका महिला और बयान देने वाली नेता भी महिला। यानी महिला बनाम महिला। किसने किया बलात्कार? कौन है असली दोषी? किसे है फुर्सत इस पर बात करने की? हालांकि रीता के बयान पर मचा बवाल इतनी जल्दी थमता नजर नहीं आता है। और हो सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से भी रीता की छुट्टी हो जाए! पर इस तरह की अमर्यादित राजनीति कब तक होती रहेगी औऱ इससे क्या हासिल होगा?

2 comments:

Udan Tashtari said...

पूरा का पूरा घटनाक्रम ही अफसोसजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है.

Rahul Rathore said...

काफी दुर्भाग्यजनक...इससे पता चलता है कि हम किधर जा रहे है |