Sunday, September 14, 2008

सत्ता की लालसा

सत्ता रूपी सुख है ही ऐसा जो एक बार इसे भोग ले, उसका जी इस सुख को बार-बार भोगने के लिए मचलता है। ठीक यही हाल भाजपा का है। वह सत्ता में आने के लिए बहुत जल्दी में है। इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को आतुर है। लेकिन पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि किसी भी मुद्दे पर उसकी स्पष्ट नीति नहीं है।

जब देश में चुनावी बिगुल बजता है तो भाजपा को राम की याद सताने लगती है। सत्ता में आते ही राम को भूलना शुरू कर देती है। अगर ऐसा न होता तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की इतनी फजीहत न होती। पार्टी फिर धार्मिक मुद्दों के सहारे चुनावी नैय्या पार करने में जुटी है। इस बार रामसेतु व अमरनाथ प्रकरण को भुनाना चाहती है।

जब पार्टी सत्ता में होती है तो जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को कायम रखने वाले अनुच्छेद 370 को ताक पर रख देती है, जब सत्ता से बाहर होती है तो उसे वहीं सबसे बड़ा मुद्दा नजर आता है। जब केंद्र में भाजपा की सरकार होती है तो अमरनाथ यात्रियों की नृशंस हत्याएं होती हैं। कश्मीर में गैर मुस्लिमों का सामूहिक नरसंहार होने पर भी कश्मीरी पंडितों के वापस घाटी में भेजने की कोई योजना तैयार नहीं की जाती और जब पार्टी सत्ता से बाहर होती है तो इसे अमरनाथ यात्रा के राष्ट्रीयकरण और घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से क्षेत्र आवंटन व्यावहारिक लगता है।

क्या अपने ही राज्य में कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से इलाके मुकर्रर किए जा सकते हैं? क्या किसी धार्मिक यात्रा का राष्ट्रीयकरण किया जा सकता है?पार्टी के आला नेता सोचते हैं कि वादे करने में क्या जाता है, चुनावी मौसम में सब चलता है। मगर यह ऐसी राजनीति है जो देश को तोड़ने का काम करती है जोड़ने का नहीं। काश! यह बात हमारे नेताओं की समझ में आती।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

aap kI baat se sahamat he
dhanyavaad

Anil Pusadkar said...

sahi kah rahe hain aap agar neta dogle nahi hote to desh swarg ban jaata