अगर एक प्रांत का नागरिक दूसरे प्रांत में जाकर नाम, इज्जत, दौलत और शोहरत कमाता है तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) वोट बैंक मजबूत करने के लिए उस पर भी सियासत करने से बाज नहीं आ रही है।
शिवसेना यह अच्छी तरह से जानती है कि मनसे उससे प्रांतीय मुद्दा छीनने के लिए आमदा है। इस कारण शिवसेना मनसे से दो कदम आगे रहना चाहती है। इसीलिए बाल ठाकरे ने जया बच्चन पर टिप्पणी तो की ही पर साथ में शाहरुख खान पर भी तीखा प्रहार किया। यह सभी जानते हैं कि इस मुद्दे पर अगर जरा सी पकड़ कमजोर हुई तो मराठी लोगों का एक बड़ा वोट बैंक हाथ से खिसक सकता है। लेकिन अगर इस राजनीति में सबसे ज्यादा किसी का नुकसान हो रहा है तो वह है आम आदमी जिसके मन में मुंबई में रहने और कमाने को लेकर कहींन कहीं खौफ पनप रहा है।
शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि शाहरुख खुद को दिल्ली वाला कहकर प्रांतवाद को बढ़ावा देते हैं। मुंबई ने उन्हें नाम, इज्जत, दौलत व शोहरत दी और ये सब कुछ भूलकर खुद को दिल्ली वाला बताते हैं। वे भूल गए कि जब वह मुंबई आए थे, तब उनके पास पैर फैलाने की भी जगह नहींथी। आज बंगला, नौकर-चाकर होने के बाद वे सिर्फ दिल्ली वाला हूं कहकर महाराष्ट्र के शौर्य का अपमान कर रहे हैं।
जिस तरह से आज बाल ठाकरे कह रह हैं कि अगर आप (शाहरुख) दिल्ली से हैं तो महाराष्ट्र क्यों आए। इसी तरह कल दूसरे प्रांतों के नेता भी अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए कहने लगे तो कोई ताज्जुब की बात नहीं।
Tuesday, September 9, 2008
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7 comments:
पागलपन है.. कंहा उलझे है.. दया आती है..
Ranjan
aadityaranjan.blogspot.com
Aapki baat sat pratishat sahi hai. akhand bharat men aisi rajniti theek nahi hai. agar anya pradeshon ke log marathiyon ke sath vaise hi karne lage to kya hoga ? jo marathi anya pradeshon men rah kar unche padon par karyarat hain ya achha business kar rahe hain, unhe kya donon thakare mahashay maharashtra bulana chahenge? darasal yah chingari sulgana hi theek nahi hai.kendra sarkar ko is disha men sochna chahiye aur maharashtra se bahar jo marathi base hue hain unhe chahiye ki is sankat ki or thakre chacha-bhatija ka dhyan aakrist karen.
क्षेत्रवाद की क्षुद्र मानसिकता से ग्रसित विघटनवादी तत्वों द्वारा राष्ट्र को विखण्डित करने का एक कुत्सित प्रयास है यह।
ये सिर्फ पागलपन है। संघीय ढांचे को तोड़ने की एक साजिश।
शाहरुख़ नहीं तो कोई और सही - उनका उसूल तो है असंतोष फैलाने का. उनको क्या चाहे शाहरुख हों अमिताभ हों या सोनिया गांधी!
बहुत खतरनाक जहर फ़ैल रहा है ! पता नही चुनाव के मौसम में इनको
क्या होने लगता है ? बहुत शर्मनाक है ! आपने बहुत सटीक लिखा है !
धन्यवाद और शुभकामनाएं !
prant aur bhasha ki deewarein khadi karna desh key lia ghatak hai.
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