Wednesday, September 3, 2008

विरोध ये क्या गुल खिला रहा

न ये धरना और प्रदर्शन होते
न टाटा सिंगूर को टाटा करते
न उसे बेटों की नौकरी जाने की चिंता सताती
और न ही उसने जहर खाकर खुदकुशी की होती
सुहाग तो उसका उजड़ गया
विरोधियों का क्या बिगड़ गया
बाप तो उनका नहीं रहा
विरोध ये क्या गुल खिला रहा.

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बिल्कुल सही विचार प्रेषित किए है।
बहुत बढिया!

Pawan Kumar said...

good post on relevent issue.keep it up.

Udan Tashtari said...

५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.