Saturday, September 27, 2008
क्योंकि तू बेकसूर है
तो फिर क्यों दहलती
आतंकी पहले ई-मेल करते हैं
फिर फोन करते हैं
मगर वो नहीं जागते हैं
तब विस्फोट करते हैं
बेकसूर निशाना बनते हैं
फिर अफरा-तफरी मचती है
तब उनकी नींद खुलती है
और चौकसी बढ़ती है
फिर बयानबाजी शुरू होती है
कोई कहता है निंदनीय है
कोई कहता है अफसोसजनक है
कोई कहता है दुखद है
मगर वो क्या करें, जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खो दिया है
जिन बेकसूर लोगों का लहू बहा है
जब राष्ट्रीय राजधानी इतनी महफूज है
तो अवाम कितनी महफूज है यह बताने की जरूरत भी नहीं है
करार जरूरी है
अमन की जरूरत नहीं हैं
तेरा भी तो कसूर है
क्योंकि तू बेकसूर है
इसीलिए तेरा लहू बहता है
फिर भी इन्हें नहीं दिखता है.
Saturday, September 20, 2008
कुछ तो शर्म करो
अगर शनिवार को निगमबोध घाट पर सोनिया पहुंची होती तो देश में यह संदेश जाता कि मौजूदा सरकार आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को गंभीरता से ले रही है। मगर इन्होंने मौके पर जाना उचित नहीं समझा।
ऐसा नहीं है कि सोनिया चाहती तो क्या समय नहीं निकाल सकती थीं। मगर ये तो नेता हैं इसीलिए दूर की सोचते हैं! इन्होंने सोचा कि आगामी चुनाव में कहीं मुस्लिम वोट कम न हो जाए! इसीलिए इन्होंने शर्मा को श्रद्धांजलि देनी उचित नहीं समझी !!
गौरतलब है कि शर्मा उन आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हुए थे, जिन्होंने राष्ट्रीय राजधानी को बम धमाकों से दहला दिया था। क्या शर्मा की मौत इतने सम्मान की भी हकदार नहीं कि देश के राजनीतिक और प्रशासनिक प्रमुख मौके पर पहुंच कर श्रद्धांजलि दें?
आखिर सोनिया क्यों नहीं पहुंची निगमबोध घाट पर? सरकार का यह रवैया आतंकियों के लिए हौसलाअफजाई ही तो है, इससे तो आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा। इसका जिम्मेदार कौन है?
सरकार के इस रवैये के बाद क्या फिर कोई बेटे को देने की बजाए देश के लिए अपना लहू बहाएगा? अब उनके दिल पर क्या गुजरती होगी, जिन्होंने अपना बाप खोया है।
उस बाप पर क्या गुजरती होगी, जिसने अपने बेटे को मुखाग्नि दी। उस पत्नी का रो-रोकर क्या हाल हुआ होगा, जिसने अपना सुहाग को दिया। मगर इन नेताओं को क्या कहें, इन्हें तो शर्म आती नहीं।
Monday, September 15, 2008
तमाशबीन बने रहेंगे सफेदपोश
वे दिल्ली दहलाते रहे
ये पोशाक बदलते रहे
वे दर्द से कराहते रहे
ये केश संवारते रहे
फिर भी उन्हें मिली क्लीन चिट
मिलती भी क्यों ना चुनाव में होना जो है हिट
छोटे मियां
पहले राज्य सरकारों को कोसने से थे थकते नहीं
अब कहते हैं एक अरब अवाम की सुरक्षा मुनासिब नहीं
कहते हैं हर धमाके से रहा हूं सीख
फिर भी अवाम की सुनाई नहीं देती चीख
ये सीखते रहेंगे, वे धमाके करते रहेंगे और लोग चीखते रहेंगे
फिर भी तमाशबीन बने रहेंगे सफेदपोश.
Sunday, September 14, 2008
सत्ता की लालसा
सत्ता रूपी सुख है ही ऐसा जो एक बार इसे भोग ले, उसका जी इस सुख को बार-बार भोगने के लिए मचलता है। ठीक यही हाल भाजपा का है। वह सत्ता में आने के लिए बहुत जल्दी में है। इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को आतुर है। लेकिन पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि किसी भी मुद्दे पर उसकी स्पष्ट नीति नहीं है।
जब देश में चुनावी बिगुल बजता है तो भाजपा को राम की याद सताने लगती है। सत्ता में आते ही राम को भूलना शुरू कर देती है। अगर ऐसा न होता तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की इतनी फजीहत न होती। पार्टी फिर धार्मिक मुद्दों के सहारे चुनावी नैय्या पार करने में जुटी है। इस बार रामसेतु व अमरनाथ प्रकरण को भुनाना चाहती है।
जब पार्टी सत्ता में होती है तो जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को कायम रखने वाले अनुच्छेद 370 को ताक पर रख देती है, जब सत्ता से बाहर होती है तो उसे वहीं सबसे बड़ा मुद्दा नजर आता है। जब केंद्र में भाजपा की सरकार होती है तो अमरनाथ यात्रियों की नृशंस हत्याएं होती हैं। कश्मीर में गैर मुस्लिमों का सामूहिक नरसंहार होने पर भी कश्मीरी पंडितों के वापस घाटी में भेजने की कोई योजना तैयार नहीं की जाती और जब पार्टी सत्ता से बाहर होती है तो इसे अमरनाथ यात्रा के राष्ट्रीयकरण और घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से क्षेत्र आवंटन व्यावहारिक लगता है।
क्या अपने ही राज्य में कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से इलाके मुकर्रर किए जा सकते हैं? क्या किसी धार्मिक यात्रा का राष्ट्रीयकरण किया जा सकता है?पार्टी के आला नेता सोचते हैं कि वादे करने में क्या जाता है, चुनावी मौसम में सब चलता है। मगर यह ऐसी राजनीति है जो देश को तोड़ने का काम करती है जोड़ने का नहीं। काश! यह बात हमारे नेताओं की समझ में आती।
Friday, September 12, 2008
मंत्री जी का कमाल
नेता और मंत्री भी आम जन के पास आए
जनता को सौगातें देने की मची होड़
इसीलिए ये मेहनत कर रहे हैं जीतोड़
कृषि व सहकारिता मंत्री गोपाल भार्गव का कमाल
एक दिन में ग्यारह सौ शिलान्यास कर मचाया धमाल
इसलिए नहींकि क्षेत्र का विकास हो
इसलिए कि इनकी चुनावी नैय्या पार हो
Tuesday, September 9, 2008
क्या शाहरुख दिल्ली के नहीं?
शिवसेना यह अच्छी तरह से जानती है कि मनसे उससे प्रांतीय मुद्दा छीनने के लिए आमदा है। इस कारण शिवसेना मनसे से दो कदम आगे रहना चाहती है। इसीलिए बाल ठाकरे ने जया बच्चन पर टिप्पणी तो की ही पर साथ में शाहरुख खान पर भी तीखा प्रहार किया। यह सभी जानते हैं कि इस मुद्दे पर अगर जरा सी पकड़ कमजोर हुई तो मराठी लोगों का एक बड़ा वोट बैंक हाथ से खिसक सकता है। लेकिन अगर इस राजनीति में सबसे ज्यादा किसी का नुकसान हो रहा है तो वह है आम आदमी जिसके मन में मुंबई में रहने और कमाने को लेकर कहींन कहीं खौफ पनप रहा है।
शिवसेना ने अपने मुख्यपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है कि शाहरुख खुद को दिल्ली वाला कहकर प्रांतवाद को बढ़ावा देते हैं। मुंबई ने उन्हें नाम, इज्जत, दौलत व शोहरत दी और ये सब कुछ भूलकर खुद को दिल्ली वाला बताते हैं। वे भूल गए कि जब वह मुंबई आए थे, तब उनके पास पैर फैलाने की भी जगह नहींथी। आज बंगला, नौकर-चाकर होने के बाद वे सिर्फ दिल्ली वाला हूं कहकर महाराष्ट्र के शौर्य का अपमान कर रहे हैं।
जिस तरह से आज बाल ठाकरे कह रह हैं कि अगर आप (शाहरुख) दिल्ली से हैं तो महाराष्ट्र क्यों आए। इसी तरह कल दूसरे प्रांतों के नेता भी अपना वोट बैंक मजबूत करने के लिए कहने लगे तो कोई ताज्जुब की बात नहीं।
Monday, September 8, 2008
क्या माफी मांगे जया?
हालांकि इस बात की शुरुआत प्रियंका चोपड़ा ने की थी। कहा था कि उन्हें हिंदी में बात करना पसंद है। इस पर जया ने उनका समर्थन कर दिया। इसके बाद जया ने यह भी कह दिया कि मराठी लोग उन्हें माफ करें।
इसके बावजूद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के अध्यक्ष राज ठाकरे का कहना है कि मनसे उस समय तक बच्चन परिवार की फिल्मों के प्रदर्शन की अनुमति नहीं देगा, जब तक जया अपनी कथित मराठी विरोधी टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांग लेती। क्या राज की हिटलरशाही जायज है? क्या जया को सचमुच माफी मांग लेनी चाहिए?
Saturday, September 6, 2008
राह आसान नहीं
हो गए थे मानसिक रूप से बीमार
फिर भी हिम्मत नहीं हारी
भारी मतों से जीत गए जरदारी
ज्यादा खुशी भी ठीक नहीं
आगे की राह आसान नहीं.
Wednesday, September 3, 2008
विरोध ये क्या गुल खिला रहा
न टाटा सिंगूर को टाटा करते
न उसे बेटों की नौकरी जाने की चिंता सताती
और न ही उसने जहर खाकर खुदकुशी की होती
सुहाग तो उसका उजड़ गया
विरोधियों का क्या बिगड़ गया
बाप तो उनका नहीं रहा
विरोध ये क्या गुल खिला रहा.