जब बचने के लिए कोई तरकीब नहीं दिखी भाई।
तब मुशर्रफ ने इस्तीफा देने में ही समझी भलाई।।
पड़ोसी मुल्क का कर दिया बंटाधार।
देश छोड़ने पर अब भी संशय बरकरार।।
तानाशाही का अंत देख जनरल की आंखों में आंसू आए।
आएं भी क्यों न मुश को बुश भी नहीं बचा पाए।।
Monday, August 18, 2008
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4 comments:
तानाशाही का अंत देख जनरल की आंखों में आंसू आए।
आएं भी क्यों न मुश को बुश भी नहीं बचा पाए।।
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।
वाह सचिन जी,
समसामयिक विषयों पर एसे ही पैनी नज़र बनाये रखें...बहुत अच्छा लिखा है आपने।
***राजीव रंजन प्रसाद
टिप्पणी के लिए सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद.
बहुत बढ़िया..
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