Sunday, August 24, 2008

कब मिलेगी शांति

महबूबा और उमर ने फिर उगली आग
खामोश केंद्र न जाने अलाप रहा कौन सा राग

अंगारों में तब्दील हो चुकी है घाटी की शांति
क्या यहां की अवाम को कभी मिलेगी भी शांति

कब तक सिकेंगी ये सियासी रोटियां
और फिट करते रहेंगे अपनी गोटियां।

1 comment:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

जब तक चापलूस, दिशाहीन, रीढ़ विहीन, उच्श्रिंखल छुटभैयों से,
सिर्फ़ निजी स्वार्थ के लिए अमन, चैन, जीवन मिटाने वाले बाहूबलियों से,
लिज़लिज़े, कमजोर, हुक्म के गुलाम बैसाखियों के आश्रित तथाकथित नेताओं से देश छुटकारा नहीं पा जाता।