इनकी जान बचाने के लिए वे शहीद हो गए और उनकी इस कुर्बानी को याद करने के लिए ये चंद मिनट भी नहीं निकाल सके। ये वहीं शहीद हैं जो सात साल पहले संसद पर हुए हमले में शहीद हो गए थे। मगर कई सांसद ही नहीं,बल्कि कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी इन शहीदों को श्रद्धांजलि देना जरूरी नहीं समझा।
जबकि अभी कुछ दिन पहले ही संसद ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की प्रतिबद्धता जताई थी। तब आश्चर्य हो रहा था कि जो इतने स्वार्थी होते हैं, वो आतंकवाद के खिलाफ कैसे लड़ेंगे? मगर अब यकीन हो गया कि जो सांसद चंद मिनट इन शहीदों को याद करने के लिए नहीं निकाल सकते, वे क्या खाक आतंकवाद के खिलाफ लड़ेंगे।
आज सांसदों के पास इन शहीदों की कुर्बानी याद करने के लिए समय नहीं है तो कल जवान भी तो यह सोच सकते हैं कि कौन इन स्वार्थियों को बचाने के लिए शहीद हो?
Saturday, December 13, 2008
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4 comments:
अगर मेरा बस चले तो इन कमीनो को कभी ना बचाऊ, साले मरे.
धन्यवाद
सादर ब्लॉगस्ते,
आपका यह संदेश अच्छा लगा। क्या आप भी मानते हैं कि पप्पू वास्तव में पास हो जगाया है। 'सुमित के तडके (गद्य)' पर पधारें और 'एक पत्र पप्पू के नाम' को पढ़कर अपने विचार प्रकट करें।
First of all Wish u Very Happy New Year...
Sundar Rchana ...
Badhai....
कुछ रहे वही दर्द के काफिले साथ
कुछ रहा आप सब का स्नेह भरा साथ
पलकें झपकीं तो देखा...
बिछड़ गया था इक और बरस का साथ...
नव वर्ष की शुभ कामनाएं..
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