चाहे वह प्रधानमंत्री हों या गृहमंत्री भले ही आए दिन कहते हों कि आतंकवाद से निपटने के लिए कड़ा कानून बनेगा। ये किया जाएगा, वो किया जाएगा। मगर किया कुछ नहीं जाता है। और उम्मीद भी नहीं है कि कुछ कर भी पाएंगे ये। जब तक नेतागण आतंकवाद से निपटने की रणनीति बनाते हैं, उससे पहले ही आतंकी कोई बड़ी वारदात को अंजाम दे देते हैं। इसके बाद फिर आतंकवाद से निपटने का राग अलापा जाने लगता है। और कुछ समय के बाद फिर चुप्पी साध ली जाती है। पड़ोसी मुल्क भी इससे वाकिफ है।
अब भले ही प्रधानमंत्री यह कह रहे हों कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी। पाकिस्तान में आतंकी अड्डों को नष्ट किया जाएगा। और गृहमंत्री यह कह रहे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कानून बनेगा। मगर सिर्फ बयानबाजी से क्या आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा? पड़ोसी मुल्क पर सिर्फ निशाना साधने से काम नहीं चलेगा। जरूरत है उससे सख्ती से निपटने की। जब पड़ोसी मुल्क अपनी ओछी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है तो आप सब क्यों बरत रहे हैं संयम?
Thursday, December 11, 2008
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2 comments:
अजी अब क्या कहें,आतंकवाद हमारी नियति है। ये तो केवल भूमिका बन रही है, हम पर और बड़ी विपत्तियां आने वाली हैं।क्यूं कि 2020 तक महाशक्ति बनने का सपना देख रहे इस देश की हुकूमत चंद कायर और सत्तालोलुप नपुंसक कर रहे हैं।
बहरहाल आपने अच्छा लिखा है.केवल बातों से कुछ नहीं होगा, इसके लिए अब कठोर निर्णय लेने ही होंगे.
शेर का दिल चाहिये. ओर वो ही इस सरकार के पास नही.
धन्यवाद
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