चुनावी मौसम में वैसे तो नेता जी आते हैं, वादे करते हैं और चले जाते हैं। भले ही वो वादे पूरे हो या ना हों पर कोई इनसे यह नहीं पूछता है कि पिछली बार इन्होंने जो वादे किए थे, उनमें से कितने पूरे हुए। और अगर कोई पूछने की हिम्मत करता है तो उसे पुलिस हिरासत में ले लेती है। क्या ये उचित है?
जम्मू के सतवारी ब्लाक के पनोत्रेचक गांव में नेता जी ने वादों की झड़ी लगाई ही थी कि ये करूंगा, वो करूंगा। इतने में एक वोटर से नहीं रहा गया। और वह बोल पड़ा आपने पिछली बार भी कुछ ऐसे ही वादे किए थे, उनका क्या हुआ?
भरी सभा में उसने नेताजी से जवाब मांगने की हिम्मत की, और बाकी सब मूक दर्शक बने रहें। शायद इसीलिए उसकी आवाज दबा दी गई। जब तक सच के खिलाफ लोग एकजुट नहीं होंगे, तब तक ऐसे ही आवाज दबा दी जाती रहेगी। अगर दूसरे लोग भी आवाज बुलंद करते तो उनका क्या बिगड़ जाता?
Wednesday, November 26, 2008
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2 comments:
आप सही कह रहै है हमे एक जुट हो कर बोलना चाहिये, अरे जब एक जुट हो कर इन के जुल्म सहते है तो क्यो नही एक जुट हो कर एक आवाज मै बोलतए ?
धन्यवाद
नेताओ को वोट मांगने आते हैं सिर्फ
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