झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भी लग रहा है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की राह पर चलने की तैयारी कर रहे हैं !
तभी तो विधानसभा के अष्टम स्थापना दिवस पर वह कहते हैं कि बिहारी यहां रह रहे हैं और रहेंगे, पर हमें आदिवासियों मूलवासियों का भी ख्याल रखना होगा।
रांची में अस्सी फीसदी आदिवासी भूमि पर कब्जा हो चुका है। जमीन के असली मालिक रिक्शा चला रहे हैं। जमीन पर इमारतें खड़ी कर ली गई हैं। ऐसा कैसे चलेगा? तब तो झारखंड में महाराष्ट्र का हाल होगा।
तो कभी यह कह रहे हैं कि झारखंड में रहने वालों को यहां के हित के बारे में सोचना होगा। यह तो हो सकता है पर उनका यह कहना कि झारखंड में जन्मा हर बच्चा झारखंडी है। क्या ये मुनासिब है?
शिबू यह क्यों नहीं बताते हैं कि बरसों-बरस से गुरबत की जिंदगी जी रहे आदिवासियों की स्थिति के लिए कौन दोषी है? आदिवासी भूमि पर कब्जा हुआ तो तत्काल क्यों नहीं कार्रवाई हुई? क्यों अट्टालिकाएं बनने का इंतजार होता रहा?
आज शिबू ऐसा कह रहे हैं, कल किसी दूसरे प्रदेश का मुख्यमंत्री कहेगा..फिर कोई और कहेगा.. क्या यह उचित है?
शिबू ही नहीं, अभी कुछ दिन पहले पंजाब में भी एक सियासी दल ने बाहरी मजदूरों को वहां से भगाने की मुहिम शुरू करने का ऐलान किया था, पर उसके मंसूबे पूरे नहीं हो पाए थे।
हरियाणा में कुछ लोगों ने मराठियों को प्रदेश छोड़ने की चेतावनी दी थी। पर प्रशासन की सख्ती के चलते उनकी एक न चली थी। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
जब भारतीय संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि कोई भी व्यक्ति कहींभी रह सकता है, काम कर सकता है तो फिर कुछ ओछी मानसिकता के लोगों ये क्यों नहीं भा रहा है। आखिर वे क्या चाहते हैं?
अगर केंद्र सरकार राज से सख्ती से निपटती तो शायद आज ये नौबत न आती। अब केंद्र की लापरवाही का खामियाजा अगर भोली-भाली जनता भुगतना पड़े तो क्या उचित है?
Sunday, November 23, 2008
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1 comment:
अरे यह शिबू वो ही नही जिसे जेल हुयी थी देश द्रोही होने पर???
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