आतंकी आते हैं और कहर बरपा कर चले जाते हैं। चाहे वह राष्ट्रीय राजधानी हो या कहीं और, हर जगह वह अपने खौफनाक इरादों को अंजाम देते हैं। फिर भी इनसे कड़ाई से निपटने के बजाए हमारे नेता एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। इससे भले ही जनता को बरगलाकर वोट हासिल किए जा सकें, पर आतंकी घटनाओं पर कैसे काबू पाएंगे जनाब?
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कहना है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल में आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का कहना है कि संप्रग सरकार के साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल के दौरान पहले की अपेक्षा कम आतंकी हमले हुए। पर हकीकत क्या है?
पाटिल कहते हैं कि, अगर कोई आतंकी घटना होती है और उसमें एक भी व्यक्ति हताहत होता है तो हमे उसे गंभीरता से लेना चाहिए और सजग हो जाना चाहिए।' पर जब आतंकी दिल्ली दहला रहे थे, उस वक्त ये जनाब कितने गंभीर और सजग थे। उधर लोग दर्द से तड़प रहे थे, इधर ये कपड़े बदल रहे थे। क्या यहीं इनकी गंभीरता है, और यहीं सजगता?
भाजपा का कहना है कि देश में आतंकवाद से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है, जबकि पाटिल का कहना है कि आतंकवाद के खिलाफ कानून बनाए हैं, जिनसे आतंकवाद को रोकने में मदद मिलेगी। फिर आतंकी घटनाएं रुक क्यों नहीं रही हैं?
Saturday, November 22, 2008
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5 comments:
एक और सवाल
इस चुनावी साल में आतंकी घटनाएं क्यों ज्यादा हैं
क्या आतंकी भी केन्द्र सरकार से नाराज हैं?
सब गोलमाल है .
सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैँ.अच्छा लिखा आपने .
sahi likha hai aapney. is muddey per gambhirta sey vichar karney ki jaroorat hai.
अरे यह कपदे बदलू को वोलो भाई कुछ बोअलने से पहले आईना तो ेख लिया करो ? आईना झूट नही बोलता.
धन्यवाद
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