Wednesday, November 5, 2008

आंसू नहीं थमते

स्वार्थ की राजनीति न होती
तो सरकारें निकम्मी न होतीं
न ही उस छुट भइये की पौ बारह होती
न मुंबई में उसकी बपौती होती
न ही उत्तर भारतीयों की हत्या होती
न ही वे विधवा होतीं
वे वोट के खातिर क्या नहीं करते
इनकी आंखों में आंसू नहीं थमते

7 comments:

ghughutibasuti said...

अफसोस कि ऐसी ही राजनीति हो रही है ।
घुघूती बासूती

राज भाटिय़ा said...

सच कहा भारत की राज्नीति देख कर "आंसू नहीं थमते"ओर शर्म आती है खुद पर क्यो इन् कमीनो को हम ने चुना

Udan Tashtari said...

गंदी राजनीति है.

seema gupta said...

न ही उत्तर भारतीयों की हत्या होती
न ही वे विधवा होतीं
वे वोट के खातिर क्या नहीं करते
इनकी आंखों में आंसू नहीं थमते

"bhut dard bhree abheevyktee.."

Regards

Dr. Nazar Mahmood said...

सच कहा

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत ही सामयिक व सटीक बात कविता के माध्यम से आपने कही है
आपको बधाई

Unknown said...

सही कहा आपने.