क्षेत्रवाद की राजनीति कर राज ठाकरे ने भले ही महाराष्ट्र की राजनीति में जगह बना ली हो, पर राष्ट्रीय राजनीति में अपना भविष्य शून्य कर लिया है। शायद उन्हें इसका आभास नहीं है अगर होता तो वह प्रेसवार्ता में यह न कहते कि सरकार बदलेगी। मेरा भी वक्त आएगा तब क्या करोगे।
राज का यह कहना तो ठीक है कि सरकार बदलेगी। पर जो वह अपना वक्त आने की बाट जोह रहे हैं, शायद उनका यह सपना हकीकत में न बदले। क्योंकि लोग अब इतने बेवकूफ नहीं हैं। वे एक क्षेत्रवादी को ज्यादा उठता हुआ देखना नहीं पसंद करेंगे। वे कुएं के मेढ़क को कुएं में ही रहना पसंद करेंगे।
भले ही समय के साथ बडे़ से बड़ा घाव भर जाता हो, पर जो घाव राज ने राहुल और धर्मदेव के परिजनों को दिए हैं वो क्या कभी भर सकेंगे?
दरअसल, हमारी सरकारें इतनी पंगु न होती तो क्या राज की अकड़ अभी तक बची होती?
चाहे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों को अपने स्वार्थ दिखते हैं। ये दोनों दल इस मामले में इसलिए नहींपड़ते हैं, क्योंकि उन्हें अपना वोट बैंक कम होने का भय सता रहा है।
हां, यदि राज समय के साथ-साथ खुद को भी बदलें। यानी क्षेत्रवाद से हटकर राष्ट्रहित की बात सोचें तो शायद उनकी मुराद पूरी हो जाए!
Friday, October 31, 2008
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4 comments:
sahi likha aapney.
बहुत सही लिखा आप ने
Bilkul theek kaha hai aapne
Sachin Ji, Hum Bhartiyon ke liye ye chhetravad bahut khatarnak hai.
Hum Log apane hi chune huye rajnitigyon se pareshan Hain.
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