Tuesday, October 21, 2008

देर से क्यों जागी सरकार?

केंद्र सरकार को जो कदम बहुत पहले उठा लेना चाहिए था, उसे उठाने में इतनी देरी क्यों की? जब जम्मू जल रहा था, तब भी केंद्र काफी समय तक हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा और अब मुंबई में उत्तर भारतीयों पर राज ठाकरे के समर्थक जो कहर बरपा रहे हैं, क्या वह किसी से छिपा है? फिर भी केंद्रीय सत्ता बेखबर दिखी।

चौतरफा निंदा और विरोध के चलते अब भले ही सरकार जगी और राज की गिरफ्तारी हुई हो, पर गिरफ्तारी क्या किसी नौटंकी से कम है? सब कुछ सुनियोजित हो रहा है।

दरअसल, सरकार एक ओर तो लोगों को यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि राज को गिरफ्तार कर लिया गया है। दूसरी ओर, यह कोशिश चल रही है कि एक ही बार में राज पर जितने भी केस दर्ज हैं, उन सब का वारा-न्यारा हो जाए। कौन बार-बार की गिरफ्तारी का झंझट करेगा।

गृह मंत्री शिवराज पाटिल अब भले ही यह कर रहे हों कि हालात न सुधरे तो महाराष्ट्र में केंद्र दखल देगा। अभी तक केंद्र ने दखल क्यों नहीं दिया? क्या अभी तक उन्हें महाराष्ट्र में संवैधानिक नियमों की धज्जियां उड़ती नहीं दिख रही थीं?

केंद्रीय मंत्रियों लालू यादव, रामविलास पासवान ने राज की गुंडई पर भले ही प्रतिक्रिया व्यक्त की हो, लेकिन पाटिल मौन रहे? जबकि महाराष्ट्र उनका गृहराज्य है। और न ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राज की गुंडागर्दी पर कुछ बोलने की जरूरत समझी। क्या यह हैरत की बात नहीं?

अब शिवसेना भी राज की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के पद चिन्हों पर चलने को आतुर है। उसने भी संसद में धमकी दी कि जल्द ही इससे भी बड़ा आंदोलन शुरू हो सकता है। कल कोई और दल भी तो इसी तरह की धमकी दे सकता है? फिर क्या करेगी सरकार?

अगर समय रहते प्रांतवाद का विद्वैष फैला रहे राज पर अंकुश लगाया गया होता तो क्या कोई भी सियासी दल संसद में इस तरह की धमकी देने की हिम्मत जुटा पाता?

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

अजी ना केन्द्र की सरकार कुछ करेगी ना ही सरदार जी, जो करना है यह सब दो टके के गुण्डे ही करेगे ओर भुगतेगी गरीब जनता , अगर जनता जागे ओर कुछ करे तभी इन मन्त्री को भी नीदं खुलेगी.
धन्यवाद सुन्दर लेख के लिये

Gyan Darpan said...

सही कह रहे है भाटिया जी

समय चक्र said...

kya kahe in bevakoof rajanetao ko .apke vicharo se sahamat hu.

दिनेशराय द्विवेदी said...

पहले कदम उठाते तो जनतंत्र की हत्या के अपराधी होते। अब कदम उठाया तब जब जनतंत्र की हत्या हो चुकी। कम से कम हत्या तो माथे नहीं। जनता की किस को पड़ी है?

श्रीकांत पाराशर said...

bhai, soye hue ko to jagaya ja sakta hai parantu jo sone ka dhong kare usko kaise jagaya ja sakta hai? Maharashtra men sarkar sone ka dhong kar rahi hai, use jagana kathin hai.

Anil Pusadkar said...

भले देर से जगी हो,पर अब दोबारा सोना नही चाहिये,बहुत सही लिखा आपने।

दिवाकर प्रताप सिंह said...

यह पूरा प्रकरण यह सिद्ध करता है कि हमारे नेतागण अपनी सत्ता-लिप्सा में कुर्सी से आगे सोंच नहीं पाते हैं फिर वे इतिहास की त्रासदियों से भला क्या सबक सीखेंगे ?