Sunday, August 31, 2008

भूख से बिलख रहे लाल

बिहार में बाढ़ हुई और बिकराल
भूख से बिलख रहे हैं उनके लाल
कई दिन से नहीं मिला निवाला
बाढ़ ही खा गई उनका रखवाला
किसकी छाती से चिपक रात बिताएं
और किसे अपना दुख-दर्द सुनाएं
सिर्फ इंसान ही नहीं फंसे हैं भाई
जानवरों की जान पर भी बन आई
उनके संकट में भी इन्हें दिखे वोट
तभी तो बंटे पांच-पांच सौ के नोट.

Wednesday, August 27, 2008

रोटी कैसे मुहैया कराई

गुरुजी ने फिर झारखंड की गद्दी कब्जाई
आते ही बारह सूत्री प्राथमिकताएं गिनाई

यह जरूरी नहीं ये पूरी भी हो पाएंगी भाई

हर किसी को रोटी, कपड़ा, मकान कैसे मुहैया कराई

पहले नौ दिन थी धाक जमाई

इस बार जरूर गुल खिलाई.

Sunday, August 24, 2008

कब मिलेगी शांति

महबूबा और उमर ने फिर उगली आग
खामोश केंद्र न जाने अलाप रहा कौन सा राग

अंगारों में तब्दील हो चुकी है घाटी की शांति
क्या यहां की अवाम को कभी मिलेगी भी शांति

कब तक सिकेंगी ये सियासी रोटियां
और फिट करते रहेंगे अपनी गोटियां।

Thursday, August 21, 2008

अब किसकी बारी


नेताओं की बलिहारी, जमीन की खातिर जम्मू में दी जा रही गिरफ्तारी

अब बच्चों की बारी, हजारों ने दी गिरफ्तारी

नर-नारी तो दे चुके गिरफ्तारी, अब किसकी बारी.

Monday, August 18, 2008

इस्तीफे में समझी भलाई

जब बचने के लिए कोई तरकीब नहीं दिखी भाई।
तब मुशर्रफ ने इस्तीफा देने में ही समझी भलाई।।

पड़ोसी मुल्क का कर दिया बंटाधार।
देश छोड़ने पर अब भी संशय बरकरार।।

तानाशाही का अंत देख जनरल की आंखों में आंसू आए।
आएं भी क्यों न मुश को बुश भी नहीं बचा पाए।।

ये जो कुर्सी न होती...

ये जो कुर्सी न होती तो कुछ भी न होता

न तो कोई समर्थन देता और न ही वापस लेता

न खरीदे जाते सांसद, न शर्मसार होती संसद

न सीएम बनने के लिए गुरुजी चलाते 'कोड़ा'

और न ही संकट में होते कोड़ा.

Wednesday, August 13, 2008

आसान है उकसाना

मुद्दा कोई भी हो आसान है लोगों को उकसाना।
क्योंकि यह है सियासी दलों का कारनामा।।

मुश्किल तो तब होगी, जब हो नियंत्रित करवाना।
जम्मू-कश्मीर में भी कुछ ऐसा ही हुआ।।

और हो गई स्थिति नियंत्रण से बाहर।
केंद्र को नहीं आ रही समझ, कैसे बुझे आग।।

कब तक झुलसते रहेंगे इस आग में लोग।
और तमाशबीन बने रहेंगे ये सफेदपोश।।

Tuesday, August 12, 2008

कब तक जलेगा जम्मू-कश्मीर

जिस तरह रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था, आज उसी तरह जम्मू-कश्मीर जल रहा है केंद्र सरकार बांसुरी बजा रही है।

अगर ऐसा न होता तो श्री अमरनाथ जमीन विवाद को लेकर भड़की विरोध की चिंगारी जम्मू को चपेट में नहींलेती। जम्मू-कश्मीर प्रशासन भले ही हालत पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है, पर उसका कोई असर होता दिन नहीं रहा है।

अगर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों से ही जम्मू-कश्मीर समस्या का हल निकलना होता तो कब का समाधान हो गया होता। फिर धरती का 'स्वर्ग' कहा जाने वाला भू-भाग आज इतना उपेक्षित न होता, और न ही घाटी का अमन आज अंगारों में तबदील होता।

हकीकत तो यह है कि जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर न तो कभी कांग्रेस ने ईमानदारी दिखाई और न ही भाजपा ने। इन सियासी दलों ने श्रीनगर में जाकर कश्मीरियत और दिल्ली में आकर हुर्रियत का रोना रोया। यहीं कारण है कि आज भी यह समस्या जस की तस है।

कब तक जम्मू-कश्मीर जलेगा और कैसे हल होगा श्री अमरनाथ जमीन विवाद?

Wednesday, August 6, 2008

..तो फिर कौन मदद करेगा देश की

भले ही काफी कुछ बदला है पर 'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' की मानसिकता में शायद अभी तक बदलाव नहीं आया है।

अगर आया होता तो आज शायद देश के कुछ राजनीतिज्ञ, अफसर, जज व अन्य लोग सरकारी बंगलों को अपनी बपौती समझकर उसमें सांप की तरह कुंडली मारकर नहीं बैठते। शायद वह सरकारी बंगलों को इसलिए नहीं खाली कर रहे हैं, क्योंकि इसे वह अपनी संपत्ति समझ रहे हैं। अगर वह इन्हें खाली कर देंगे तो फिर इनकी देखभाल कौन करेगा।

इन सरकारी बंगलों को खाली कराने के लिए राज्य व केंद्र सरकार कड़ा रुख नहीं अपनाती है। क्योंकि सरकार भी तो इन मेहरबान है, अगर नहीं होती तो क्या सरकार इतनी लचर हो गई है कि वह इन बंगलों को न खाली करा सके। खाली तो करा सकती है, पर कराती नहीं है।

शायद सुप्रीम कोर्ट को भी इस बात का अहसास हो गया है, तभी तो उसने यह निराशाजनक टिप्पणी दी है कि...' पूरी सरकारी मशीनरी भ्रष्ट है'। 'भगवान भी इस देश की मदद नहीं कर सकता, वह भी सिर्फ मूक दर्शक ही बना रहेगा।'

अगर इस टिप्पणी के बाद भी राज्य व केंद्र सरकार की आंखें नहीं खुलती हैं और वह सरकारी बंगलों में काबिज लोगों को नहीं खदेड़ती है, तो फिर उससे क्या अपेक्षा की जाए। आज ये लोग सरकारी बंगलों पर काबिज हैं, कब किसी के घर व जमीन पर भी तो कब्जा कर सकते हैं। फिर क्या होगा।