न तो उन्हें कोई अफसोस है, न ही वो माफी मांगना चाहते हैं। बस वो तो सिर्फ चर्चा में ही बने रहना चाहते हैं। तभी तो इनका कहना है कि मैं जो कह रहा हूं या जो कर रहा हूं, वहीं ठीक है। भले ही हमाम में सभी नंगे हो पर.. चाहे वो बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख व उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती हो या समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव। इन्हें तो बस वोट और नोट चाहिए।
जब करोड़ों की माला पहनने का मायावती का विरोध हुआ तो बसपा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नोटों की माला पहने, भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी का चांदी का मुकुट पहने और मुलायम सिंह यादव का चांदी की गदा लिए फोटो जारी कर दिया। बसपा का कहना है कि जब सोनिया और दूसरे नेता नोटों की माला पहन सकते हैं तो वे अपनी नेता को नोटों की माला क्यों नहीं पहना सकते? इतिहास गवाह है कि ऐसे भी नेता हुए हैं जो बिन कुछ लिए ही देश के लिए क्या कुछ नहीं किया?
मुलायम का कहना था कि महिला विधेयक पास हुआ तो संसद में उद्योगपतियों और अधिकारियों की बेटियां और महिलाएं जाएंगी जिनको देखकर लड़के पीछे से सीटी बजाएंगे। इस पर माफी मांगना तो दूर वे अभी भी अपनी बात पर पर अड़े हैं। इनका कहना है कि मैंने जो कहा था, सही कहा था। ऐसा बयान मैंने जानबूझकर दिया था। इसके पीछे उनका मकसद महिला विधेयक पर बहस शुरू करवाना था। मुझे मालूम था कि इस बयान से समाज में एक बहस छिड़ेगी और लोग जाने सकेंगे कि अगर यह कानून बन गया तो इसके दुष्परिणाम क्या होंगे।
इन सियासी दलों के मुखिया कब तब लोगों को मूर्ख बनाते रहेंगे? उनके खून-पसीने की कमाई की यूं ही माला पहनते रहेंगे? क्या कभी जनता इन्हें सबक भी सिखा पाएगी?
Friday, March 26, 2010
Tuesday, March 16, 2010
ये सब क्या है
अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, जब उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ में कृपालु महराज के आश्रम में मची भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को देने के लिए सूबे की मुख्यमंत्री के पास पैसे नहींथे। तब उनका कहना था कि सूबा वित्तीय संकट से गुजर रहा है, लिहाजा भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है।
कहां से आए पैसे
अगर पैसे नहीं थे तो बहुजन समाज पार्टी की ख्भ्वीं वर्षगांठ के मौके पर लखनऊ को मुख्यमंत्री मायावती के पोस्टरों से कैसे पाट दिया गया।
माया की महामाला
एक-एक हजार के नोटों से बनी माला पहने मायावती। दूर बैठे लोग बहुत देर तक यही कयास लगाते रहे कि आखिर ये माला किन फूलों से बनाई गई, जो इतना चमक रही है। लगता है इसी कारण इन दिनों सूबे में एक-एक हजार के नोट नहीं दिख रहे हैं।
Sunday, March 7, 2010
तो कैसे भरेंगे जख्म
माया की 'माया' अगर अपरंपार न होती तो वह चर्चा में क्यों रहती। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की। ये मूर्तियों पर तो पानी की तरह करोड़ों रुपये बहा सकती हैं पर, कृपालु महाराज के आश्रम में मची भगदड़ में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए इनके पास पैसे नहीं है। ये हम नहीं,बल्कि खुद मायावती जी कह रही हैं।
उनका कहना है कि राज्य आर्थिक तंगी में गुजर रहा है। इस कारण सरकार पीडि़तों को मुआवजा देने की स्थित में नहीं है। पर सवाल यह उठता है कि जब सरकार के पास आर्थिक तंगी है तो फिर मूर्तियों पर पानी की तरह पैसे क्यों बहाए जा रहे हैं। हालांकि मुआवजे से पीडितों के जख्म तो नहीं भर जाएंगे, पर उन्हें कुछ राहत जरूर मिल जाती। पर क्या करें, माया जी हैं कि मानती ही नहीं।
उनका कहना है कि राज्य आर्थिक तंगी में गुजर रहा है। इस कारण सरकार पीडि़तों को मुआवजा देने की स्थित में नहीं है। पर सवाल यह उठता है कि जब सरकार के पास आर्थिक तंगी है तो फिर मूर्तियों पर पानी की तरह पैसे क्यों बहाए जा रहे हैं। हालांकि मुआवजे से पीडितों के जख्म तो नहीं भर जाएंगे, पर उन्हें कुछ राहत जरूर मिल जाती। पर क्या करें, माया जी हैं कि मानती ही नहीं।
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