Saturday, December 13, 2008

कौन याद करे कुर्बानी

इनकी जान बचाने के लिए वे शहीद हो गए और उनकी इस कुर्बानी को याद करने के लिए ये चंद मिनट भी नहीं निकाल सके। ये वहीं शहीद हैं जो सात साल पहले संसद पर हुए हमले में शहीद हो गए थे। मगर कई सांसद ही नहीं,बल्कि कई केंद्रीय मंत्रियों ने भी इन शहीदों को श्रद्धांजलि देना जरूरी नहीं समझा।

जबकि अभी कुछ दिन पहले ही संसद ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की प्रतिबद्धता जताई थी। तब आश्चर्य हो रहा था कि जो इतने स्वार्थी होते हैं, वो आतंकवाद के खिलाफ कैसे लड़ेंगे? मगर अब यकीन हो गया कि जो सांसद चंद मिनट इन शहीदों को याद करने के लिए नहीं निकाल सकते, वे क्या खाक आतंकवाद के खिलाफ लड़ेंगे।

आज सांसदों के पास इन शहीदों की कुर्बानी याद करने के लिए समय नहीं है तो कल जवान भी तो यह सोच सकते हैं कि कौन इन स्वार्थियों को बचाने के लिए शहीद हो?

Thursday, December 11, 2008

फिर संयम क्यों?

चाहे वह प्रधानमंत्री हों या गृहमंत्री भले ही आए दिन कहते हों कि आतंकवाद से निपटने के लिए कड़ा कानून बनेगा। ये किया जाएगा, वो किया जाएगा। मगर किया कुछ नहीं जाता है। और उम्मीद भी नहीं है कि कुछ कर भी पाएंगे ये। जब तक नेतागण आतंकवाद से निपटने की रणनीति बनाते हैं, उससे पहले ही आतंकी कोई बड़ी वारदात को अंजाम दे देते हैं। इसके बाद फिर आतंकवाद से निपटने का राग अलापा जाने लगता है। और कुछ समय के बाद फिर चुप्पी साध ली जाती है। पड़ोसी मुल्क भी इससे वाकिफ है।

अब भले ही प्रधानमंत्री यह कह रहे हों कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी जाएगी। पाकिस्तान में आतंकी अड्डों को नष्ट किया जाएगा। और गृहमंत्री यह कह रहे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ कड़ा कानून बनेगा। मगर सिर्फ बयानबाजी से क्या आतंकवाद का खात्मा हो जाएगा? पड़ोसी मुल्क पर सिर्फ निशाना साधने से काम नहीं चलेगा। जरूरत है उससे सख्ती से निपटने की। जब पड़ोसी मुल्क अपनी ओछी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है तो आप सब क्यों बरत रहे हैं संयम?