पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ शायद यह भूल गए हैं कि पड़ोसी मुल्क ने जब-जब यहां के लोगों पर कहर बरपाया, तब-तब उसे मंुहतोड़ जवाब दिया गया। उन्हें खेमकरण और कारगिल की मार भी याद नहीं रही, तभी तो कहते हैं कि 'मुझे नहीं लगता कि पाक पर भारत हमला बोल सकता है। हमारी फौज भी पूरी तरह तैयार है। हम ही क्यों न पहले हमला बोल दें।' मियां मुश शायद देशवासियों के सब्र का इम्तिहान ले रहे हैं। मगर उनको यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन देशवासियों के सब्र का प्याला भर गया उस दिन हिंद पर कुदृष्टि डालने वालों को कौन बचाएगा?
पाक के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी का यह कहना कि 'फलस्तीन में कितनी निर्दोष महिलाएं और बच्चे मारे जा रहे हैं। इनकी तादाद मुंबई हमलों में मारे गए लोगों से कहीं कम नहीं है। फिर भी उनके बारे में दुनिया चुप है।' क्या ठीक है? आखिर वह क्या चाहते हैं कि जो इस तरह की अनाब-शनाब बयानबाजी करने से बाज नहीं आ रहे हैं? क्या पड़ोसी मुल्क के हुक्मरान यूं ही अनाब-शनाब बयानबाजी करते रहेंगे?
Saturday, January 10, 2009
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